Saturday, November 07, 2009

सबसे ऊँची छत

सबसे ऊँची छत से क्या बादल दिखाई देते हैं
क्या वहाँ भी होती है बारिश
क्या वहाँ भी बहते हैं पतझर के आँसू गिरती हुई बूँदों में
क्या वहाँ भी होती है दोपहर सुबह और शाम के बीच....
क्या वहाँ दुनिया को बनाने वाला कुम्हार रहता है
मिट्टी की बनी यह दुनिया टूट गई है सबसे ऊँची छत से गिर कर
क्या ठीक कर सकता है वह इसे.

©मोहन राणा

4 comments:

Kavita Vachaknavee said...

"क्या वहाँ भी बहते हैं पतझर के आँसू गिरती हुई बूँदों में "

सुन्दर !!

अजय कुमार झा said...

सबसे ऊंची छत के बारे में इतना सुंदर तो पहली बार पढा .....अद्भुत ..मोहन जी ..बहुत खूब

अजित गुप्ता का कोना said...

व़हीं ज्‍यादा बहते हैं आँसू। बढ़िया अभिव्‍यक्ति।

Randhir Singh Suman said...

nice

The Translator : Nothing is Translated in Love and War

  8 Apr 2025 Arup K. Chatterjee Nothing is Translated in Love and War Translation of Mohan Rana’s poem, Prem Au...