बचपन में यानि कल , हम एक संस्कृत का श्लोक सुना करते थे,
वह हमें समझाने के लिए बताया जाता था अक्सर जब देर से कभी उठने पर तो....
काकचेष्टा वकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च | अल्पहारी गृह्त्यागी विद्यार्थी पंचलक्षण्म् ।|
पर हमने कभी इस ज्ञान का पालन नहीं किया
जिंदगी ही इतनी ज्यादा पसरी हुई है कि इन पाँच नियमों को याद रखने की फुरसत कहाँ,
भूल गए उन्हें इस लिए यह याद है.
आजकल नींद एक बजे के बाद कभी आती है, और सुबह अपने समय पर।
जागने और सोने में जैसे बस एक पल का अंतर, अवगम ।
The Translator : Nothing is Translated in Love and War
8 Apr 2025 Arup K. Chatterjee Nothing is Translated in Love and War Translation of Mohan Rana’s poem, Prem Au...
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चुनी हुई कविताओं का चयन यह संग्रह - मुखौटे में दो चेहरे मोहन राणा © (2022) प्रकाशक - नयन पब्लिकेशन
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