हम जो सोचते हैं वास्तविकता कुछ और होती है.
अनुभव ही सब कुछ है, प्रश्न भी वही उत्तर भी,
देव वही दानव वही ,चेतना और पदार्थ भी, अर्थ और अर्थहीन दोनों वही, बस अनुभव
नींद और जागने का. दरवाजे पर डाकिया घंटी बजाता है सुबह सुबह,
मुस्कराता है - मुझे नींद में चलता देख - कहता है, 'मुझे मालूम था तुम भीतर ही थे'.
©22.4.06
Saturday, April 22, 2006
डाकिया
The Translator : Nothing is Translated in Love and War
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