Sunday, April 02, 2006

इंद्रधनुष


शनिवार अप्रैल का पहला दिन, बारिश और धूप की तनातनी सारा दिन चलती रही, एक गहरी बौछार फिर उसका जवाब..
एक पारदर्शी चमकती धूप से- कि रुक देखने को विविश हो जाता आकाश अपनी ही नीलिमा को, फिर कोई गुस्साया बादल... छींटाकशी आरंभ होती ...
छींटो की बौछार ... ,
प्रकृति की इस जुगलबंदी पर अभी सोच ही रहा था कि पूरब का आकाश एक विशाल इंद्रधनुष से जगमगा गया.
शाम के 6.25 हो रहे थे , मैं उसे देखता रहा धीरे धीरे वह विलीन होता गया.



1 april 2006
eastern sky, fox hill, Bath - around 6.25 pm Saturday
©mrana

What I Was Not

 Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...