Sunday, April 01, 2007

सीटी


कल बगीचे में रसभरी के पौधे लगाने के लिए खुदाई कर रहा था कि एक पुरानी सीटी मिट्टी में दबी मिली. जाने कब से यह पड़ी होगी मैंने सोचा ,

दबी हुई सुनती धरती की धड़कन, चुपचाप.
सुबह शाम बीते कई मौसम कि बरस कई,
गया इतना कि नहीं उसकी स्मृति कहीं,
पर सीटी तो चेतावनी देने के लिए होती है..







© मोहन राणा 1.4.07

4 comments:

सुजाता said...

प्रोफ़ाइल मे आपकी उम्र दरा रही है ।मनुष्य ही हो ना महाराज!
कुछ और भी बताए {चाहे तो} अपने बारे मे। आप तो प्रकाशित होते रहे ,कभी ध्यान नही दिया आपकी काव्य रचनाओ पर।

Anonymous said...

बताओ नोटपैड जी के अवधान के बिना आप कवि हो गये . यह कैसे हो सकता है कि कोई उनकी जानकारी के बिना कवि हो जाए .अब इसे उनकी कूपमंडूकता माना जाए या आपका दुर्भाग्य.

-- चौपटस्वामी

ePandit said...

बहुत दिन बाद लिखा मोहन जी। शुक्र है वो सीटी मिली और आप वापस लिखने बैठे।

@Notepad,
सुजाता जी, ये तो कुछ नहीं आपने फुरसतिया जी के ब्लॉगर प्रोफाइल पर उनकी उम्र नहीं पढ़ी क्या?

अफ़लातून said...

सुन्दर ।

What I Was Not

 Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...