मेज पर सामान पड़ा है, कतरनें,
पुरानी होती रसीदें और चुपके से जमा होती धूल.
इतने दिन हो गए कि हर रोज.
मैंने डाकिये से कहा होने वाली है बारिश
सड़क के दूसरी ओर ही रहना वरना भीग जाओगे.
अब इस गीली चिठ्ठी को कहाँ रखूँ
© मोहन राणा
Thursday, July 30, 2009
Wednesday, July 29, 2009
विदूषक
Thursday, July 23, 2009
चाँद के बाहुपाश में सूरज
: सूरज-चाँद के बिना धरती पर जो जीवन है जिसे हम जीवन कहते हैं वह असंभव है,
दोनों का अदभुद तालमेल है,
उनकी जुगलबंदी में धरती पर जीवन को लय मिलती.
(सूर्यग्रहण 22 जुलाई09 6.26 प्रातः)
आर्यभट्ट (476 ईस्वी) ने सूर्य ग्रहण को लेकर एक श्लोक की रचना की थी-
'छादयति शशि सूर्यं, शशिनं च भूच्छाया'
अर्थात्
सूर्यग्रहण के समय चंद्रमा सूर्य को ढक लेता है और चंद्रमा को पृथ्वी की छाया।
(सूर्यग्रहण 22 जुलाई09 6.26 प्रातः)
आर्यभट्ट (476 ईस्वी) ने सूर्य ग्रहण को लेकर एक श्लोक की रचना की थी-
'छादयति शशि सूर्यं, शशिनं च भूच्छाया'
अर्थात्
सूर्यग्रहण के समय चंद्रमा सूर्य को ढक लेता है और चंद्रमा को पृथ्वी की छाया।
Friday, July 17, 2009
विक्रम सेठ I wish
विक्रम सेठ एक साक्षात्कार में कहते हैं
'I Wish More Writers Would Fight For A Big Advance' Vikram Seth
http://www.outlookindia.com/full.asp?fodname=20090720&fname=AVikram+Seth&sid=1
पर विक्रम अंग्रेजी में लिखते हैं उनका आशय यह आवहन ... ललकार उसी भाषा के लेखकों के लिए होगी ... पर हिन्दी के मसिजीवियों का क्या होगा. बंदर के गले में कौन बिल्ली सौ चूहे खाकर घंटी बाँधेगी.
कागज के जंगलों में कागजी शेरों की दहाड़ या म्याउ
स्याह रिक्तताओं में भटकते
याद दिलाते अपनी ही भूली पहचान ...
अब तो आइने भी महँगे हो चुके हैं
'I Wish More Writers Would Fight For A Big Advance' Vikram Seth
http://www.outlookindia.com/full.asp?fodname=20090720&fname=AVikram+Seth&sid=1
पर विक्रम अंग्रेजी में लिखते हैं उनका आशय यह आवहन ... ललकार उसी भाषा के लेखकों के लिए होगी ... पर हिन्दी के मसिजीवियों का क्या होगा. बंदर के गले में कौन बिल्ली सौ चूहे खाकर घंटी बाँधेगी.
कागज के जंगलों में कागजी शेरों की दहाड़ या म्याउ
स्याह रिक्तताओं में भटकते
याद दिलाते अपनी ही भूली पहचान ...
अब तो आइने भी महँगे हो चुके हैं
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