मेज पर सामान पड़ा है, कतरनें, पुरानी होती रसीदें और चुपके से जमा होती धूल. इतने दिन हो गए कि हर रोज. मैंने डाकिये से कहा होने वाली है बारिश सड़क के दूसरी ओर ही रहना वरना भीग जाओगे. अब इस गीली चिठ्ठी को कहाँ रखूँ
पब में दो लोग अपने अपने होश को संभालते एक दूसरे को जोरों से बोलते, कुछ खास कहने की कोशिश करते हुए असफल होते हैं और जितना जोर से बोलते उतना ही सुनना कठिन हो जाता है अपने ही शोर को सुनते हुए. कौन है विदूषक इस कोलाहल में.
: सूरज-चाँद के बिना धरती पर जो जीवन है जिसे हम जीवन कहते हैं वह असंभव है,
दोनों का अदभुद तालमेल है,
उनकी जुगलबंदी में धरती पर जीवन को लय मिलती.
(सूर्यग्रहण 22 जुलाई09 6.26 प्रातः)
आर्यभट्ट (476 ईस्वी) ने सूर्य ग्रहण को लेकर एक श्लोक की रचना की थी- 'छादयति शशि सूर्यं, शशिनं च भूच्छाया' अर्थात् सूर्यग्रहण के समय चंद्रमा सूर्य को ढक लेता है और चंद्रमा को पृथ्वी की छाया।
पर विक्रम अंग्रेजी में लिखते हैं उनका आशय यह आवहन ... ललकार उसी भाषा के लेखकों के लिए होगी ... पर हिन्दी के मसिजीवियों का क्या होगा. बंदर के गले में कौन बिल्ली सौ चूहे खाकर घंटी बाँधेगी.
कागज के जंगलों में कागजी शेरों की दहाड़ या म्याउ स्याह रिक्तताओं में भटकते याद दिलाते अपनी ही भूली पहचान ... अब तो आइने भी महँगे हो चुके हैं