Wednesday, August 18, 2010

कविता के लिए कोई नया शब्द नहीं

मेरी पड़ोसन ने संगीत का स्वर अपने मकान में तेज कर दिया, पिछली कई मर्तबा से भी तेज
मकान की दीवारें अचानक जैसे अपनी गहरी तंद्रा से जाग उठी यह कैसा ध्वनि तंत्र इस पड़ोसन ने आज चालू कर दिया,
मैं संग्रह के ड्राफ्ट में उलझा बैठा हूँ वह शराब पी के ऊँची आवाज में संगीत सुन रही है- कैसे कोई सुन सकता है मदहोशी में... मेरी खीज धीरे धीरे बढ़ती गई.. आखिर मुझसे रहा नहीं गया.
बाहर सड़क पर पार्क कारों और अकेली खंबो की जगमगाहट के कोई नहीं दिखता, रविवार की शाम है.
मैंने थोड़ा साहस करके दरवाजे की घंटी बजाई.. पर भीतर से संगीत के अलावा कुछ सुनाई नहीं दिया..
आखिर में लड़खड़ाती सी वह दरवाजे पर आई , मैंने उसे कहा.. जरा.. कृपया संगीत कम कर दें.... अह ओके, मदहोश स्वर में उसने कहा और दरवाजा बंद कर दिया..
मैं उम्मीद के साथ फिर डेस्क पर..
पर अब संगीत जैसे कुछ और उद्वेलित हो गया.... आखिर फिर कुछ देर तक अपने ही आत्मविवाद से गुस्सा कर मैं फिर उसके दरवाजे की ओर बढ़ गया..
इस बार एक खुरदरी सफेद दाढ़ी वाला आदमी दरवाजे पर उपस्थित हुआ
.. ये संगीत जरा कम कीजिये ना
.. नहीं मैंने कम कर दिया है वह खीज के बोला..
मेरे घर से आप आ कर सुनें कितना तेज है दीवारें कांप रही हैं, मैंने उसे आमंत्रित किया
नहीं,उसका स्वर कुछ उत्तेजित हो गया, मैंने कम करना था कर दिया.
संगीत कम करिये जरा मैं कुछ लिख रहा हूँ,
क्या समय हुआ वह बोला ये कोई लिखने समय है क्या..
मैं लेखन ही करता हूँ और 11.45 हुए हैं.. प्रतिवाद करते मैं बोला
ये लिखने का समय नहीं है सुबह लिखना अचानक वह सलाह के मूड में आ गया
अब सो जाओ..
...ये संगीत कम .. मेरा वाक्य अधूरा ही रह गया
नहीं..कहते उसने दरवाजा बंद कर दिया. संगीत डेढ़ बजे रात तक चलता रहा. मैंने कंप्यूटर बंद कर दिया... कुछ सोचने की कोशिश, सोने की भी..
कविता के लिए कोई नया शब्द नहीं मिला. मैंने उसे अँधेरे में कहीं रख दिया और आशा कि दिन के उजाले में उसे खोजूँगा.
आशा एक बोझ है जरूरी बोझ, और हमेशा उसके अनुपस्थित हो जाने का भय कहीं, समानंतर उपस्थित.
सपने में मैंने देखा
एक औरत अटकलें लगा रही है बीस बिलयन पाउंड में ग्यारह शून्य होते हैं..ग्यारह शून्य.. शून्य
©

The Translator : Nothing is Translated in Love and War

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