बनाते हुए पुल, अविराम सांसों के साथ जुटा हूँ पूरा करने में.
आने को है एक मौसम, बह जाएगा उसके सैलाब में रेत का पुल कभी
उससे पहले पार कर लूँ समय की नदी को बिना नाव के,
सोते हुए क्या मुझे याद रहेगा यह सपना
सुबह की नींद में जाग कर भी
©26/8/10 मोहन राणा
Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...