Wednesday, August 18, 2010

दोपहर के बीच गुमनाम दिन

दोपहर के बीच गुमनाम दिन
मैं दोस्तों को पहचान कर अपनी पुष्टि करता हूँ..
भविष्य है पहले से ही हुआ, हमें सिर्फ यह अब याद नहीं है.


















© मोहन राणा

What I Was Not

 Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...