Saturday, August 28, 2010

दो पहरों के बीच

काली चिड़िया के मुँह में लाल बेरी
सीत्कारता है मंडराता बाज़
पल को सांस रोक लेती है पेड़ों की डालें..

What I Was Not

 Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...