Wednesday, January 05, 2011

शून्य का दशक

कितने चेहरे पहने
मैं उन्हें पहनता बदलता रहा अपने मतलब के लिए
तुम्हें सच से बचाने के बहाने
झूठ कहता रहा किसी कान में फुसफुसा कर ,
दस और साल बीत गए
बीत ही गया शून्य का दशक
हर कोशिका में खालीपन छोड़ पर,

तुम्हारी फेसबुक पर
मैंने साध रखी है अपनी उपस्थिति में पलायन की चुप्पी

©

What I Was Not

 Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...