Thursday, January 13, 2011

लार्ड मैकाले का तंबू

मैं वर्नकुलर भाषा में कविता लिखता हूँ
आपको यह बात अजीब नहीं लगती
मैं कंपनी के देश में वर्नकुलर भाषा में कविता लिखता हूँ,

मतलब कागज पर नाम है देखें
मिटे हुए शब्दों में धुँधली हो चुकी आँखें
ढिबरी से रोशन गीली दोपहरों में,
कबीर कह चुके असलियत
माया महाठगनि हम जानी,
और मैं केवल अपने आप से बात कर सकता हूँ
पहले खुद को अनुसना करता हूँ


कोई नहीं संदर्भ के लिए रख लें इस बात को कहीं
आगे कभी जब दिखें लोग आँखें बंद किये
तो पार करा दीजियेगा उन्हें रास्ता कहीं कुछ लिख कर,
मैं खुद भी भूल गया था इसे कहें रख
कुछ और खोजते आज ही मुझे याद आया
मैं भाग रहा था अपने ही जवाबों के झूठ से
कहता मैं सच की तलाश में हूँ


मैंने अपने बगीचे में बाँध रखीं हैं घंटियाँ पेड़ों से
एकाएक मैं जाग उठता हूँ उनकी आवाजें रात में सुनकर
कहीं वे गुम ना हो जाएँ
मेरे वर्नकुलर शब्दों की तरह



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कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है / The poem Chooses Its Own Birth

Year ago I wrote an essay 'कविता अपना जनम ख़ुद तय करती है ' (The poem Chooses Its Own Birth) for an anthology of essays  "Liv...