ना उसकी अपनी जाति, भाषा
ना कोई अस्मिता का सवाल
कोई घर भी नहीं उसका वह हमेशा बेघर
दुनिया के विस्तार में
रोशनी और परछाईयों के खेल में,
जीवन और मृत्यु उसके लिए एक समान
एक सांस
किसी से भी पूछो - क्या है यह
और हर भाषा में एक ही जवाब है - हवा
अपने हाथों को कानों से लगा
मैं सुनता हूँ उसे कुछ बोलते
तुम्हारी आवाज में
©मोहन राणा mohan rana 27/9/05