मैं लौटता हूँ हर शाम फिर इस कुर्सी पर
भरने उड़ान अपने अंतरिक्ष की ओर
वहाँ मैं खाली कर सकता हूँ पर्चियों से भरे झोले को
वहाँ सब कुछ उपस्थित है
नया पुराना एक साथ
वहाँ वर्तमान चाकू की धार नहीं
अंतहीन विस्तार है
कि तभी कोई आवाज
हर सुबह
फिर कब आओगे
© मोहन राणा
Tuesday, June 24, 2008
Sunday, May 25, 2008
Wednesday, May 21, 2008
आज दोपहर
सुना लंदन में एक पेड़ किसी बस पर गिर गया
या बस उस पेड़ से टकरा गई
या वे दोनों एक दूसरे पर गिर पड़े,
एक औरत की मौत हुई
वह जा रही थी कहीं किसी काम से कि यह घटना हुई
पुलिस एक दम हरकत में आ गई,
अकस्मात के बाद कुछ सूझता नहीं
याद की हुई तैयारियाँ
अर्थहीन बुदबुदाहटें जैसे उस पल सहम गए समय की
आज दोपहर की खबर
पर पोस्टमैन तो अब गायब ही हो गया
आया ही नहीं यहाँ आज
बताइये ये हालत है इंग्लिस्तान की
मुझे याद नहीं पड़ता
घर तो बदला नहीं तीन दिनों में!
मैंने भीतर से बंद दरवाजे को देखा
लगा मैं उसके बाहर खड़ा हूं
सड़क की आवाज को सुनता
मैं घिरा हूँ अटकलों से
जैसे कई दिन से आकाश बादलों से
किसी ने सवाल किया मेरी कविता आध्यात्मिक तो नहीं लगती
मुझे खुद भी याद नहीं
मैंने चाबी कहाँ रख दी अपने को इस
गुफा में बंद करने से पहले.
20.5.08
या बस उस पेड़ से टकरा गई
या वे दोनों एक दूसरे पर गिर पड़े,
एक औरत की मौत हुई
वह जा रही थी कहीं किसी काम से कि यह घटना हुई
पुलिस एक दम हरकत में आ गई,
अकस्मात के बाद कुछ सूझता नहीं
याद की हुई तैयारियाँ
अर्थहीन बुदबुदाहटें जैसे उस पल सहम गए समय की
आज दोपहर की खबर
पर पोस्टमैन तो अब गायब ही हो गया
आया ही नहीं यहाँ आज
बताइये ये हालत है इंग्लिस्तान की
मुझे याद नहीं पड़ता
घर तो बदला नहीं तीन दिनों में!
मैंने भीतर से बंद दरवाजे को देखा
लगा मैं उसके बाहर खड़ा हूं
सड़क की आवाज को सुनता
मैं घिरा हूँ अटकलों से
जैसे कई दिन से आकाश बादलों से
किसी ने सवाल किया मेरी कविता आध्यात्मिक तो नहीं लगती
मुझे खुद भी याद नहीं
मैंने चाबी कहाँ रख दी अपने को इस
गुफा में बंद करने से पहले.
20.5.08
Friday, May 09, 2008
खोज
Sunday, March 30, 2008
कुछ खटकता तो है

लैटिन में एक वाक्याशं है cui bono "किसका हितलाभ" चाहे तिब्बत का मामला हो या विश्वव्यापी हो या घर पड़ोस का
यह वाक्याशं कोई संकेत तो देता ही है, जब हम उसके कारण को खोजने की कोशिश फुरसत के समय कर रहे होते हैं ....जैसे ब्लाग लिखते हुए. चार एक अखबारों और गूगल को खंगालने के बाद भी.. कुछ खटकता तो है,
दलाई लामा कहते हैं , ल्हासा के उपद्रव में चीनी हाथ है.... पर मीडिया में झाडियों की ओर उन्मुख होकर बचाओ बचाओ का शोर क्यों हो रहा है,
एक तरफ धरती को बचाने की गुहार लगी है दूसरी ओर इन्हीं गुहार लगाने वालों के आसपास ऐसे भी लोग हैं जो अपने धन और विज्ञान का प्रयोग मनुष्य जाति की छँटाई में करते हैं... कुछ कुछ पेड़ पर बैठ कर पेड़ को ही गिराने वाली बात चल रही है पश्चिमी समाजों में.
Tuesday, March 25, 2008
डर किसे है

डर किसे है
तिब्बत के पठार से उड़ी हवा
कि ये कौन लोग हैं जो भागते हैं
बचाने अपनी चौपालों को किसी संभावित दावानल से
दुनिया की राजधानियों में,
डर किसे है
इस चिंगारी से,
गायब हैं गलियारों में हुंकारने वाले मुखौटे
गायब उनकी परछाईयाँ भी
तितर बितर है धूप नई नई आती हुई गरमियों की,
अब कौन करेगा पूरी
बड़ी कविता के सपने को साकार,
लिखेगा आत्म शोक का विलाप
लुकते छुपते
उँची आवाज में कुछ कमजोर शब्द,
दुनिया की छत में जली एक चिंगारी
डर किसे है
अपनी ही स्मृति से!
25.3.08
©mohan rana
Sunday, March 16, 2008
तिब्बत का भय


चिंगारी फूटते ही पूरे तिब्बत में आंदोलन भड़क गया है, पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस पर अपना स्पष्ट मत रखने में हिचकिचाहट क्यों हो रही है क्या इसमें उसे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. लगभग बीस बरस पहले भी ल्हासा में विरोध की लहर उठी थी पर जबरन दबा दी गई, पर इस बार दबाना कठिन होगा, बिल्ली के लिए भी
और चूहों के लिए भी.. ..हो सकता है इस चिंगारी से जाने कितनी मशालें आगे जलें, परिवर्तन का समय आ गया है.
चीनी दबाव दिल्ली पर इतना है कि राजधानी के गलियारों में मंडराने वाले शेरों की बोलती बंद है,
खबरों के मुताबिक चीन बिना वर्दी वाले सैनिकों को नेपाल की सीमा के भीतर तैनात कर चुका है

Wednesday, March 12, 2008
वसुधैव कुटुम्बकम्
जलवायु परिवर्तन का अभिघात आरंभ हो चुका है.. हालाँकि जलवायु परिवर्तन से जुड़े पारित प्रस्तावों की स्याही अभी सूखी भी नहीं .. मेरे तेरे की बहसों में समय बीत रहा है
अयं निजो परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥
Friday, March 07, 2008
दुविधा
Wednesday, March 05, 2008
अतिरिक्त की पहचान
Thursday, January 31, 2008
पुस्तक मेले में
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The Translator : Nothing is Translated in Love and War
8 Apr 2025 Arup K. Chatterjee Nothing is Translated in Love and War Translation of Mohan Rana’s poem, Prem Au...

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चुनी हुई कविताओं का चयन यह संग्रह - मुखौटे में दो चेहरे मोहन राणा © (2022) प्रकाशक - नयन पब्लिकेशन
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Ret Ka Pul | Revised Second Edition | रेत का पुल संशोधित दूसरा संस्करण © 2022 Paperback Publisher ...