धूमकेतू से टकरा कर हमने क्या जाना
बदली नहीं दिशा उसकी गति उसकी
बच्चों की तरह उछले हम
बेचैन खोलते खिड़की दरवाजों को
अशांत मौसम में टटोलते अपनी स्थिरता को
होते चकित अपने ही पैरों को देख अचानक,
पर वह चलता गया चलता
फुंफकारता अंतरिक्ष के तिमिर में
बर्फानी फुंफकार
अदृश्यता के व्योम में
क्या जाना
हमने क्या जाना
कल का उत्तर
आज का प्रश्न
5.7.05