धूमकेतू से टकरा कर हमने क्या जाना
बदली नहीं दिशा उसकी गति उसकी
बच्चों की तरह उछले हम
बेचैन खोलते खिड़की दरवाजों को
अशांत मौसम में टटोलते अपनी स्थिरता को
होते चकित अपने ही पैरों को देख अचानक,
पर वह चलता गया चलता
फुंफकारता अंतरिक्ष के तिमिर में
बर्फानी फुंफकार
अदृश्यता के व्योम में
क्या जाना
हमने क्या जाना
कल का उत्तर
आज का प्रश्न
5.7.05
Wednesday, July 06, 2005
The Translator : Nothing is Translated in Love and War
8 Apr 2025 Arup K. Chatterjee Nothing is Translated in Love and War Translation of Mohan Rana’s poem, Prem Au...

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चुनी हुई कविताओं का चयन यह संग्रह - मुखौटे में दो चेहरे मोहन राणा © (2022) प्रकाशक - नयन पब्लिकेशन
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