Thursday, July 14, 2005

गरमी गरमी

चीखती हुई कुछ बोलती चिड़ियाँ
लगाती बेचैन सूखते आकाश में गोता

यह एक चलता हुआ घर
भागती हुई सड़क पर
यह एक बोलती खामोश दोपहर.




14 जुलाई 05 © मोहन राणा

What I Was Not

 Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...