क्या कहूँ नया कि याद
नहीं कहा क्या आखिरी बार,
कहाँ से शुरू करूँ बात
मालूम नहीं कौन सा शब्द
निकले इस अजनबी निकटता में
मुलाकात यह पहचान पुरानी,
जैसे धूप का कोई कतरा
अटका पेड़ की छाल में ,
आज होगी पूरी कि बस
एक आश्वासन
16.7.05 © मोहन राणा
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