Thursday, December 31, 2015
Saturday, December 12, 2015
तभी तो
इतने महीन दिन महीन बातों में
कि सच भी पारदर्शी हो गया,
झूठ पर अब शक नहीं होता
सुबह आइना देखते ही दुनिया से शाया करते हुए,
अब संतोष होता है।
समय कम है लोग कम हैं पर कहानियाँ कई
सुनकर अधसुनी लिख अधूरी कि घट चुके भविष्य को आँखें नहीं देख पातीं हाशियों में पढ़ते,
जो सुनाकर भी नहीं होती पूरी
उनके और मेरे दिनों का याद किया जमा जोड़ में भी
जो ख़ुद ब ख़ुद घटता रहता है रेत के पहाड़ में अपने कदमों को रोंदते,
सड़क का दूसरा किनारा रह जाता है जीवन में उस पार ही।
© मोहन राणा
14.12.2015
Sunday, November 29, 2015
नक़्शानवीस
The Cartographer, “As geography changes its borders, fear is my sole companion”.
पंक्तियों के बीच अनुपस्थित हो
पंक्तियों के बीच अनुपस्थित हो
तुम
एक खामोश पहचान
जैसे
भटकते बादलों में अनुपस्थित बारिश,
तुम
अनुपस्थित हो जीवन के हर रिक्त स्थान में
समय
के अंतराल में
इन
आतंकित गलियों में,
मैं
देखता नहीं किसी खिड़की की ओर
रुकता
नहीं किसी दरवाजे़ के सामने,
देखता
नहीं घड़ी को
सुनता
नहीं किसी पुकार को,
बदलती
हुई सीमाओं के भूगोल में
मेरा
भय ही मेरे साथ है
2010
The Cartographer
Between the lines it’s you,
absent, but a silent presence
just as the rain is absent in the passing clouds.
There you are, absent, in every empty space
of life. In every gap of time
on these panic-stricken roads.
I don’t look out any window,
I don’t stop at any door
I don’t watch the clock
I hear noone’s call.
As geography changes its borders,
fear is my sole companion.
---------
"Poems" by Mohan Rana
Translated from Hindi by Bernard O'Donoghue, Lucy Rosenstein (ISBN: 9780956057655) 2011
Poetry Translation Centre, London.
Between the lines it’s you,
absent, but a silent presence
just as the rain is absent in the passing clouds.
There you are, absent, in every empty space
of life. In every gap of time
on these panic-stricken roads.
I don’t look out any window,
I don’t stop at any door
I don’t watch the clock
I hear noone’s call.
As geography changes its borders,
fear is my sole companion.
---------
"Poems" by Mohan Rana
Translated from Hindi by Bernard O'Donoghue, Lucy Rosenstein (ISBN: 9780956057655) 2011
Poetry Translation Centre, London.
The Cartographer, “As geography changes its borders, fear is my sole companion”.
The Cartographer heb gezegd:
“Wanneer de geografie haar grenzen wijzigt, is angst mijn enige metgezel”
© Mohan Rana
Tuesday, November 17, 2015
आएगा संदीपन यहाँ
(संदीप राय चौधरी के लिए)
अपने दुखों के स्नायु तंतुओं को जोड़
मैं भरता पींग छूने मन की डालों के ओर छोर
जो आश्वस्त कर सके,
बीत जाएगा यह भी
विचलित धड़कनों में बल खाता दोपहर का अंतराल
पर इस बार मैंने लिखा
यहाँ आया था मैं निराखर अहेरी
खोये आकाश के दुपहरी साये
उठाए झोला भर जीवन टूटे शब्दों का,
लाल पत्थर के स्ट्रासबर्ग कथीड्रल की दीवार पर
गोया कभी पढ़ने यह आश्चर्य
आएगा संदीपन यहाँ
मिट चुके लिखे भविष्य को फिर लिखने!
2014
© मोहन राणा
मिट चुके लिखे भविष्य को फिर लिखने!
2014
© मोहन राणा
Thursday, September 24, 2015
कुछ कहना / The Blue-Eyed Blackbird
कुछ कहना क्या उचित है अपने बारे में,
इतना ही पर्याप्त है
नीली आँखों वाली काले रंग की चिड़िया हूँ
मेरे पंखों में सिमटी हैं सीमाएँ
मेरी उड़ान ने छुआ आकाश के रंग को
मैंने उचक कर देखा उसके परे अंधकार को मी
सूखती हुई नदियों और दौड़ते रेगिस्तान का पीछा मैंने किया है
जलते हुए वनों में झुलसी हूँ मैं कभी,
बारिश में घुलते दुख को मैंने चूमा है,
मैंने देखा बाढ़ से घिरे पेड़ पर जनम देती स्त्री को,
कितनी ही बार बदला है मैंने इस देह को
हर बार मैं नीली आँखों वाली काली चिड़िया हूँ।
कठिन ढलानों पर चढ़ते छुपते
युद्धों से भागते लोग मुझे देख रुकते
सोचते वे नहीं हो सकते कभी
इतनी ऊँचाई पर इतनी दूर फिर भी मैं इतने पास उनके मन में,
लंबी लकीरों में उनके चेहरों की टूटते बनते हैं देश
वे खरीदते हैं नए ताले नई चाबियाँ अपने स्वर्ग के लिए,
क्या सोचा होगा बोअबदिल ने इजाबेला को अलामबरा की चाबियाँ सौंपते
बस धीमे से कहा उसने, ''ये लो स्वर्ग की चाबियाँ"
यह अंतहीन उड़ान जिसमें न दिन है न रात
कभी डूबता और उगता है सूरज एक साथ
मेरी आँखों में बंद हैं देशांतर,
कवि के सपनों की डायरी पढ़ते
धुंध में खोकर गिर पड़ती हूँ कहीं
मिल जाती धरती के कणों में
जनमती फिर नीली आँखों वाली काली चिड़िया
कभी तीर अब बंदूकें तनी हैं जिस पर
डर नहीं है मुझे, पतझड़ के लाल रंग में घुल जाएगा मेरा रक्त,
किसी और प्रदेश से किसी और दिशा से फिर शुरू करूँगी उड़ान अपनी,
तुम्हारे ही शब्दों से गढ़ती जीवन को
मैं इस दुनिया की चीज़ नहीं हूँ
कुछ और कहना क्या उचित है अपने बारे में,
इतना ही पर्याप्त है
© मोहन राणा / Mohan Rana
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The Blue-Eyed Blackbird
Is it right to speak of myself?This will do:
I am a blue-eyed blackbird
My wings know all directions
My flight has touched the colour of the sky
When soaring aloft I've glimpsed the darkness beyond
I've tracked drying rivers and swelling deserts
I've been singed in burning forests
I've kissed anguish as it melts in the rain
I've seen a woman give birth in a tree beseiged by flood
I've changed my body so many times
and yet I am always a blue-eyed blackbird
People in flight from war, in hiding,
climbing steep slopes, stop when they see me
Stunned they are so high, so far,
even though I live in their hearts
In the deep lines of their faces
countries are shattered and rebuilt
They buy new locks, news keys to new heavens
What did Boabdil think when he handed the keys
of the Alhambra to Isabella,
whispering, 'Here are the keys to paradise'?
This endless flight with no day and no night
when the sun sets and rises at once
Longitude is locked in my eyes
Reading the diary of a poet's dreams
lost in fog, I fall
merging with the earth's dust
a blue-eyed blackbird is born again
Arrows, now guns, are aimed at me
I have no fear
My blood will mingle with the crimson of autumn
I'll take flight from another country
Another direction
Casting life from your words
I am not of this world
Is it right to speak more of myself?
This will do
© Mohan Rana
English Translation
(http://www.poetrytranslation.org/poems/the-blue-eyed-blackbird)
Thursday, August 06, 2015
आलंबन
अबाबीलें किलकाती लगातीं
गोता
चौंक कर सिर उठाते पेड़
भी मेरे साथ
दिनभर की धूप में थके
क्या मैं बदल सकता हूँ
केवल सोचकर बदलाव अपने
आप
यहाँ खिड़की में
अपनी तस्वीर
© मोहन राणा
Tuesday, June 23, 2015
होगा एक और शब्द
नीली रंगतें बदलतीं
आकाश और लहरों की
बादल गुनगुनाता कुछ
सपना सा खुली आँखों का
कैसा होगा यह दिन
कैसा होगा
यह वस्त्र क्षणों का
ऊन के धागों का गोला
समय को बुनता
उनींदे पत्थरों को थपकाता
होगा एक और शब्द
कहने को
यह किसी और दिन
[पत्थर हो जाएगी नदी (2007)]
Translation in English : "Another Word for It"
http://www.poetrytranslation.org/poems/another-word-for-it
Friday, June 12, 2015
दिलवाया उर्फ हटवाया
क्या हिन्दुस्तानी संस्कृति में केवल अयोग्य ही वरीयता की योग्यता है !
मेरा मंतव्य केवल हिन्दी में कविता लिखने वाले सरोकारी खयाल गायकों से नहीं है. अन्य कला विधाओं व संकायों में भी यह खरपतवार दृष्टिकोण जमा हुआ है.
मेरा मंतव्य केवल हिन्दी में कविता लिखने वाले सरोकारी खयाल गायकों से नहीं है. अन्य कला विधाओं व संकायों में भी यह खरपतवार दृष्टिकोण जमा हुआ है.
कविता के एक संदर्भ में यह 'दिल + वाया' शब्द
उत्तर भारत में यूँ प्रयोग होता है जैसे वहाँ कवि आसव रस पीते हुए या कहीं टहलते, यकायक गुनगुनाते या जेब में कुछ टटोलते - दूसरे कवियों को दौ कौड़ी का बताते रहते हैं .
उत्तर भारत में यूँ प्रयोग होता है जैसे वहाँ कवि आसव रस पीते हुए या कहीं टहलते, यकायक गुनगुनाते या जेब में कुछ टटोलते - दूसरे कवियों को दौ कौड़ी का बताते रहते हैं .
ये हिम्मतदार सुधिजन कभी ' हट + वाया' शब्द का प्रयोग खुले आम करते ना दिखते हैं ना सुनाई पड़ते हैं.
Thursday, June 11, 2015
दो कविताएँ- एक जिल्द
दो कविताएँ- एक जिल्द
रेत का पुल: मोहन राणा
कविता संग्रह
प्रकाशक: अंतिका प्रकाशन सी-56/यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन, एकसटेंशन-II, गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.)
मूल्य: 200 रुपये.
लॉर्ड मैकाले का तंबू
मैं वर्नेकुलर भाषा में कविता लिखता हूँ
आपको यह बात अजीब नहीं लगती
मैं कंपनी के देश में वर्नेकुलर भाषा में कविता लिखता हूँ,
मतलब कागज पर नाम है देखें
मिटे हुए शब्दों में धुँधली हो चुकी आँखें
ढिबरी से रोशन गीली दोपहरों में,
कबीर कहे माया महाठगनि हम जानी,
और सहमति से झुका केवल कर सकता हूँ अपने आप से बात
छूट गई बोली को याद करते पहले खुद को अनसुना
कि भाखा महाठगनि हम जानी
कोई नहीं संदर्भ के लिए रख लें इस बात को कहीं
आगे कभी जब दिखें लोग आँखें बंद किये
तो पार करा दीजियेगा उन्हें रास्ता कहीं कुछ लिख कर,
मैं भी भूल गया था इसे कहीं रख
कुछ और खोजते आज ही मुझे याद आया
भाग रहा था अपने ही जवाबों के झूठ से
कहता मैं सच की तलाश में हूँ
अपने बगीचे में बाँध रखीं हैं मैंने घंटियाँ पेड़ों से,
एकाएक जाग उठता हूँ उनकी आवाजें रात सुनकर
कहीं वे गुम ना हो जाएँ
मेरे वर्नेकुलर शब्दों की तरह
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पानी का रंग
(जेन के लिये)
यहाँ तो बारिश होती रही लगातार कई दिनों से
जैसे वह धो रही हो हमारे दागों को जो छूटते ही नहीं
बस बदरंग होते जा रहे हैं कमीज़ पर
जिसे पहनते हुए कई मौसम गुज़र चुके
जिनकी स्मृतियाँ भी मिट चुकी हैं दीवारों से
कि ना यह गरमी का मौसम
ना पतझर का ना ही यह सर्दियों का कोई दिन
कभी मैं अपने को ही पहचान कर भूल जाता हूँ,
शायद कोई रंग ही ना बचे किसी सदी में इतनी बारिश के बाद
यह कमीज़ तब पानी के रंग की होगी !
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को आभार इन कविताओं को प्रकाशित करने के लिए
http://raviwar.com/footfive/f74_ret-ka-pul-by-mohan-rana-book.shtml
Sunday, May 31, 2015
जो हुआ खुश
धरती आसमा बीच चहुँ दिशा के दायरे _ कोई
कोई तो
जिसने सुनी आहट दरवाजे
आया ध्यान कहीं कुछ सोचते ठिठक
जो हुआ खुश,
अपने दूर के पास देस
तुम्हारी वापसी और मेरे लौट जाने पर
कोई तो
जिसने सुनी आहट दरवाजे
आया ध्यान कहीं कुछ सोचते ठिठक
जो हुआ खुश,
अपने दूर के पास देस
तुम्हारी वापसी और मेरे लौट जाने पर
© मोहन राणा
Sunday, May 03, 2015
बम भरम अगड़ बगड़
Illusions का भी अपना मजा है ।
यहाँ शहर में एक आदमी अपने खोखे में जादू के खेल बेचता है अक्सर मैंने देखा है किसी गुजरते चमकृत ग्राहक को पकड़ने के लिए वो एक ट्रिक खेलता रहता है, दस पाउंड के नोट के बीच पेन ठूंस कर निकालना, पेन नोट के आर पार हो जाता है पर पेन वापस खींचते ही, नोट बिल्कुल खरी हालत में, कोई छेद नहीं!
शायद मन की तरंगों में भी ईमेल प्रसारित होती रहती हैं। इलैक्ट्रान्स का चक्रम, पता ही नहीं चलता, बम भरम अगड़ बगड़ और
विचार कब विचार बन जाते हैं मन के डिब्बे में ।
विचार कब विचार बन जाते हैं मन के डिब्बे में ।
सदा पानी में पानी
जिसमें मिला वो हो गया पानी
चिर बंधन जो मिला वो बन गया
बादलोें को सपना लपक सतह पर एक बुलबुला खींच
गोता उन गहराईयों में कोई किनारा छू
मन मीन प्यासी इस आस में
मन मीन प्यासी इस आस में
घिरेगा आकाश उन प्रदेशों में कभी जहाँ हवा भी डरती है दिन दुपहरी,
लिखा अलिखा रह जाता अपढ़ा
यही सुनते
जाग मच्छंदर गोरख आया
अलख अलख बोल जग भरमाया
© मोहन राणा
जाग मच्छंदर गोरख आया
अलख अलख बोल जग भरमाया
© मोहन राणा
Tuesday, March 17, 2015
नक्शे में रेखा
जो छूटा वो अब दूर
जो पास आता वो भी बहुत दूर
फिलहाल अपने दिन रात को बदलना होगा
कुर्सी को झुका नींद की करवट में गर हो सके तो,
दो देशांतरों के बीच सीमा पार करते जहाज मीटर और फीट ऊँचाई बताता
खिसकता है नक़्शे में रेखा पर
मैंने देखा वह
जिया वह
कि कह सकूँ चुप रह
गरमियां आयेंगी यहाँ जो याद नहीं रह पातीं
अपने से हमेशा बहुत दूर,
मैंने छुआ है नक़्शे में किसी और रेखा में
तपती दोपहर चलती गरम हवा की भी होती है अपनी उदासी
सरसर पीपल के झोंकों में बची छाया तल बैठे,
कि कभी लगता एक चमक टूट कर गिरेगी मुझ पर आकाश से
© मोहन राणा
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चुनी हुई कविताओं का चयन यह संग्रह - मुखौटे में दो चेहरे मोहन राणा © (2022) प्रकाशक - नयन पब्लिकेशन