Monday, October 31, 2005

29 अक्तूबर 05

शनिवार की दोपहर मैं शहर के बीच पोस्ट ऑफिस में प्रवेश कर रहा था , फोन को चालू किया तो उसमें एक
संदेश - जैसे एक पल को समय रुक सा गया - दिल्ली में विस्फोट!
आसपास का कोलाहल एकाएक खामोश हो गया उसे पढ़ते ही , एक सांस कहीं गुम हो गई.

यह क्या हो गया दीपावली के पहले?

...देर रात तक मैं पता करता रहा लोगों के हाल फोन से ईमेल से ,
नेट पर तस्वीरों में सदमा, शोक, भय और अनिश्चय, ठिठकते आंतकित दिल्ली के नागरिक

फिर पढ़ा कि ...

लोगों की शिकायत थी कि तमाम वीआईपी लोगों के लगातार अस्पताल आते रहने से घायलों और उनके परिजनों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

अस्पताल में भर्ती घायलों के परिजनों में से एक ने बताया, "यहाँ लगातार नेताओं का आना-जाना लगा है और इसके चलते हमें बार-बार वॉर्ड से बाहर निकाल दिया जा रहा है और हम अपने घायल परिजनों से नहीं मिल पा रहे हैं. बाहर न तो बैठने की जगह है और न ही पीने को पानी."


रविवार की सुबह रेडियो चालू किया , बीबीसी पर एक औरत की आवाज खबरों में सुनाई दी ... वह कह रही थी तो कि हम इतने इतने रुपए मृतकों और घायलों के परिवारों को सहायता के लिए देंगे. बाद में पता चला वह दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित थीं.

The Translator : Nothing is Translated in Love and War

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