Wednesday, October 05, 2005

नदी किनारे



नदी किनारे हवा ठंडी , घुल रहा था शाम का रंग पानी की मौन सतह में कि तभी एक छपाक,
कोई मछली या बत्तख या दोनों ही या कोई स्मृति जैसे बस चौंकाने के लिए- बिना कुछ कहे.
चलती हल्की रिमझिम में दुनिया दूसरी ओर नदी किनारे .
हमेशा पुल के दोनों ओर, और मेरे लिए दूसरी ओर यह दुनिया.

5.10.05 ©

What I Was Not

 Mohan Rana's poems weave a rich tapestry of memory and nostalgia, a journeying through present living. Explore the lyrical beauty of th...