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नदी किनारे हवा ठंडी , घुल रहा था शाम का रंग पानी की मौन सतह में कि तभी एक छपाक,
कोई मछली या बत्तख या दोनों ही या कोई स्मृति जैसे बस चौंकाने के लिए- बिना कुछ कहे.
चलती हल्की रिमझिम में दुनिया दूसरी ओर नदी किनारे .
हमेशा पुल के दोनों ओर, और मेरे लिए दूसरी ओर यह दुनिया.
5.10.05 ©