Wednesday, October 19, 2005

जाना कुछ

अपना देश बेगाना, इस बेगानगी के सफर में.
झरते सहमते पत्ते पलभर को बल खाते
जैसे लेते एक झलक फिर
उस टहनी की जहाँ पिछला बसंत आया
कांपती रोशनी जाते हुए झोंके में,
किसको मैं देखता कि रूकता कुछ पहचान कर.



19.10.05