अपना देश बेगाना, इस बेगानगी के सफर में.
झरते सहमते पत्ते पलभर को बल खाते
जैसे लेते एक झलक फिर
उस टहनी की जहाँ पिछला बसंत आया
कांपती रोशनी जाते हुए झोंके में,
किसको मैं देखता कि रूकता कुछ पहचान कर.
19.10.05
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चुनी हुई कविताओं का चयन यह संग्रह - मुखौटे में दो चेहरे मोहन राणा © (2022) प्रकाशक - नयन पब्लिकेशन
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Ret Ka Pul | Revised Second Edition | रेत का पुल संशोधित दूसरा संस्करण © 2022 Paperback Publisher ...