Friday, October 14, 2005

कभी नहीं जैसे कितनी बार

सचमुच रास्ते का कहीं पहुँचने से कोई सम्बंध नहीं - पर चलने से है.
चलती रहती , घिसटती रपटती पंक्चर गाड़ी- अटकती झटकती
चलती बस चलती, पहुँच कहीं दूर वहीं जैसे फिर शुरू करती
सीखती चलना पहचानती सीधे पर अचानक आए मोड़ को,
एक बार यह होना
कभी नहीं जैसे कितनी बार


©14.10.05 मोहन राणा

The Translator : Nothing is Translated in Love and War

  8 Apr 2025 Arup K. Chatterjee Nothing is Translated in Love and War Translation of Mohan Rana’s poem, Prem Au...