Saturday, October 08, 2005

भूकंप

कुछ खड़खड़, दरवाजे का कुंडा हिलने लगा
धरती मेरे पाँवों नीचे कांप रही थी
और मैं डर से खोज रहा था
कोई जगह जहाँ
कोई खड़खड़ ना हो
दरवाजा बंद रहे शांत
और धरती ना कांपे मेरे पैरों नीचे,
मैंने पेड़ को हिलते देखा
हवा को सहमते
छायाओं को छुपते
दुस्वपन बीच एक दोपहर.

The Translator : Nothing is Translated in Love and War

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